हमारा इंडिया न्यूज (हर पल हर खबर) मध्यप्रदेश/जबलपुर।मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की प्रधानपीठ ने एक मामले में कहा है कि उच्च न्यायालय में मातृभाषा हिन्दी में सुनवाई चलती रहेगी। मामला यह था कि पंकज कुकरेजा एवं अन्य ने हिन्दी में प्रस्तुत एक रिट याचिका के माध्यम से सागर संभागायुक्त के आदेश को चुनौती दी थी। जब हिन्दी वाली रिट याचिका न्यायाधिपति श्री विवेक अग्रवाल की एकल पीठ के समक्ष प्रथम सुनवाई हेतु नियत हुई तो एकल पीठ ने यह सवाल उठाया कि याचिकाकर्ता ऐसी कोई अधिसूचना प्रस्तुत करे जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 (2) के तहत मध्यप्रदेश राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों को हिन्दी भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत किया गया हो, ताकि याचिकाकर्ता की याचिका को मातृभाषा हिन्दी में सुना जा सके। जब याचिकाकर्ता का मामला द्वितीय सुनवाई पर उच्च न्यायालय की न्यायाधिपति मनिन्दर एस. भट्टी की एकल पीठ के समक्ष नियत हुआ तब याचिकाकर्तागणों की ओर से आनन्द चावला एडवोकेट ने पक्ष रखते हुए मध्यप्रदेश राज्य द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 18/09/1971 प्रस्तुत कर दलील दी कि उक्त अधिसूचना द्वारा हिन्दी भाषी मध्यप्रदेश राज्य के नागरिकों को न केवल समस्त प्रकार की याचिकाऐं हिन्दी में प्रस्तुत करने का अधिकार है।
बल्कि उच्च न्यायालय के समक्ष मामलों की सुनवाई मातृभाषा हिन्दी में भी की जा सकती है। इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय नियम 2008 के अध्याय 10 के नियम 2 (ए) के तहत स्वयं माननीय उच्च न्यायालय ने याचिकाओं को अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी में भी प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता राज्य के नागरिकों को दी है। मध्यप्रदेश राज्य द्वारा राज भाषा अधिनियम 1957 की धारा 7 में एक नोटिफिकेशन दिनांक 24/09/1973 भी नागरिकों के हित में पारित किया गया है कि जिसमें उच्च न्यायालय भी राज्य की मातृभाषा हिन्दी में निर्णय, जयपत्र या आदेश पारित कर सकता है, जिसके साथ उच्च न्यायालय को अंग्रेजी भाषा के अनुवाद की प्रति भी जारी करनी होगी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने डॉ. विजय लक्ष्मी साधो विरूद्ध जगदीश की सिविल अपील में 05/01/2001 के निर्णय के अनुसार मध्यप्रदेश राज्य के उच्च न्यायालय की सुनवाई हिन्दी भाषा वाली अधिसूचना दिनांक 18/09/1971 को वैध ठहराते हुए न्यायदृष्टांत भी पारित किया है। उच्च न्यायालय प्रधानपीठ जबलपुर की न्यायाधिपति मनिन्दर एस. भट्टी की एकल पीठ ने उक्त दलीलों से सहमत होते हुए याचिकाकर्तागणों को अधिसूचना दिनांक 18/09/1971 के अनुसार हिन्दी में याचिका दाखिल करने की अनुमति प्रदान की।