उज्जैन से करीब 60 से 70 किलामीटर की दूरी पर स्थित बड़नगर तहसील के ग्राम भिडावद में आज यानि बुधवार को गोवेर्धन पूजन पर्व पर फिर एक अनूठी आस्था देखने को मिली. गांव में सुबह गाय का पूजन किया गया, पूजन के बाद लोग जमीन पर लेट गए और उनके ऊपर से गाये दौड़ती हुई निकली. मान्यता है की ऐसा करने से मन्नते पूरी होती है. यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. हर साल दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन यह परंपरा निभाई जाती है जिसे मौत का खेल भी कह सकते हैं.
आस्था या अंधविश्वास?
भिडावद गांव में यह अनूठी परंपरा आज से नहीं बल्कि कई सालों से चली आ रही है. प्रदेश ही नहीं देश की उन्नति और मन्नत पूरी होने पर ग्रामीण इस परंपरा में भाग लेते हैं . इस परंपरा में श्रद्धालु 5 दिन का उपवास रखकर मंदिर में भजन-कीर्तन करते हैं और आखरी दिन जमीन पर लेटते हैं और उनके ऊपर से एक साथ सैकड़ो गाये दौड़ती हैं. वहिं ढोल की धाप पर ये सब आयोजन किया जाता है.
क्या है इस परंपरा के पीछे की वजह
परम्परा के पीछे लोगो का मानना है की गाय में 33 कोटि के देवी देवताओ का वास होता है और गाय के पैरों के नीचे आने से उन देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. देखा जाए तो आस्था के नाम पर यहां लोगो की जान के साथ खिलवाड़ किया जाता है. हमारे देश ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली हे लेकिन इक्कीसवी सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला है. आस्था और परंपरा की हदे पार हो जाए तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता है.
अन्नकूट उत्सव किसे कहते हैं
मान्यता है जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप- गोपिकायें उसकी छाया में सुरक्षित रहे, सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी, तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से भी मनाया जाता है.